कांता नाम की वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी । बिहारी जी को अपना लाला कहा करती थी उन्हें लाड दुलार से रखा करती और दिन रात उनकी सेवा में लीन रहती थी। क्या मजाल कि उनके लल्ला को जरा भी तकलीफ हो जाए। एक दिन की बात है कांता बाई अपने लल्ला को विश्राम करवा कर खुद भी तनिक देर विश्राम करने लगी तभी उसे जोर से हिचकिया आने लगी और वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था तभी कांता बाई कि पुत्री उसके घर पे आई है जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था तब कांता बाई की हिचकिया रुक गयी।