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Friday, April 10, 2015

भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिये


भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिये 


कहते है भगवान श्रीकृष्ण की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए, दरअसल पीठ के दर्शन न करने के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की एक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असुर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा. कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा.

तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले. इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा. जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा. इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है.

जिस तरह शिशुपाल की गालिया भी भगवान तब तक सुनते रहे जब तक उसके पुण्य शेष थे.गालियाँ पूरी होते ही जैसे ही उसके पुण्य क्षीण हुए भगवान ने चक्र से उसकी गर्दन को काट दी.


इसी तरह कालयवन कृष्णा की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है.

"धर्म: स्तनोंsधर्मपथोsस्य पृष्ठम् " श्रीमद्भागवत में द्वितीय स्कंध के, द्वितीय अध्याय के श्लोक ३२ में शुकदेव जी राजा परीक्षित को भगवान के विराट स्वरूप का वर्णन करते हुए कह रहे है- कि धर्म भगवान का स्तन और अधर्म पीठ है.

जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया कृष्ण एक गुफा में चले गए. जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था. मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निंद से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा. कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पढ़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया.

अत: भगवान श्री हरि की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे हमारे पुण्य कर्म का प्रभाव कम होता है और अधर्म बढ़ता है. कृष्णजी के हमेशा ही मुख की ओर से ही दर्शन करें. यदि भूलवश उनकी पीठ के दर्शन हो जाते हैं और भगवान से क्षमा याचना करनी चाहिए.

- जय श्री राधे राधे !!

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