Advertisements

Sunday, April 5, 2015

Kanha - कान्हा तुम्हें पाकर



ए "कान्हा" सुन रहे हो ना अधूरापन खत्म हो जाता है, "कान्हा" तुम्हें पाकर... 

दिल का हर "तार" गुनगुनाता है,  "कान्हा" तुम्हें पाकर... "गम" जाने किधर जाता है, "कान्हा" तुम्हे पाकर...

सब "सिकवे" दूर हो जाते हैं, "कान्हा" तुम्हें पाकर...

जानता हूँ चंद पलों की ज़िन्दगी है मेरी "अफ़सोस" नहीं रहता बाकी, "कान्हा" तुम्हे पाकर...

"राह" तकती हैं, ये लम्बी पगडंडीयां "थक" कर भी चैन पाती हैं, "कान्हा" तुम्हें पाकर...

तमाम "मायुशियाँ" छुप जाती हैं जिंदा "लाश" मानो उठ जाती है,  "कान्हा" तुम्हें पाकर...

"तनहा" मरना सब भूल जाती हूँ "कान्हा" तुम्हारा स्पर्श पाकर... "कान्हा" तुम्हें पाकर...



में तो तेरा पागल प्रेम दीवाना प्रेम करो कृष्णा।।

Advertisements