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Friday, October 23, 2015

जीवन की सचाई - Life Truth Facts

एक आदमी की चार पत्नियाँ थी। 
 
वह अपनी चौथी पत्नी से बहुत प्यार करता था और उसकी खूब देखभाल करता व उसको सबसे श्रेष्ठ देता।
वह अपनी तीसरी पत्नी से भी प्यार करता था और हमेशा उसे अपने मित्रों को दिखाना चाहता था। हालांकि उसे हमेशा डर था की वह कभी भी किसी दुसरे इंसान के साथ भाग सकती है।

वह अपनी दूसरी पत्नी से भी प्यार करता था।जब भी उसे कोई परेशानी आती तो वे अपनी दुसरे नंबर की पत्नी के पास जाता और वो उसकी समस्या सुलझा देती।

Wednesday, September 2, 2015

क्या मजाल कि उनके लल्ला को जरा भी तकलीफ हो जाए।



कांता नाम की वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी । बिहारी जी को अपना लाला कहा करती थी उन्हें लाड दुलार से रखा करती और दिन रात उनकी सेवा में लीन रहती थी। क्या मजाल कि उनके लल्ला को जरा भी तकलीफ हो जाए। एक दिन की बात है कांता बाई अपने लल्ला को विश्राम करवा कर खुद भी तनिक देर विश्राम करने लगी तभी उसे जोर से हिचकिया आने लगी और वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था तभी कांता बाई कि पुत्री उसके घर पे आई है जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था तब कांता बाई की हिचकिया रुक गयी।

Thursday, July 2, 2015

यह तो बता दो बरसाने वाली मैं कैसे तुम्हारी लगन छोड़ दूंगा




यह तो बता दो बरसाने वाली मैं कैसे तुम्हारी लगन छोड़ दूंगा ... 

तेरी दया से यह जीवन है मेरा मैं कैसे तुम्हारी शरण छोड़ दूंगा...!!

Tuesday, June 30, 2015

वृन्दावन में हुकुम चले बरसाने वाली का !!




वृन्दावन में हुकुम चले बरसाने वाली का !!

अरे कान्हा भी दीवाना है श्री राधे रानी का !!

Monday, June 29, 2015

श्री कृष्ण ने क्यों किया कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथेली पर?




श्री कृष्ण ने क्यों किया कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथेली पर ?

जब कर्ण मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया।

कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया जिससे कृष्ण काफी प्रभावित हुए। कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं।

Saturday, June 20, 2015

अरे कान्हा भी दीवाना है श्री राधे रानी का






वृन्दावन में हुकुम चले बरसाने वाली का !!

अरे कान्हा भी दीवाना है श्री राधे रानी का !!

सभी को कहते देखा बड़ी सरकार श्री राधे !!

लगेगा पार बेड़ा जो कहेगा श्री राधे राधे !!

चारों तरफ है बजता डंका श्री वृषभान दुलारी का !!

अरे कान्हा भी दीवाना है श्री राधे रानी का !!


- जय श्री राधे राधे !! -


Thursday, June 18, 2015

जब गवाही देने अदालत पहुंचे बांके बिहारी


जब गवाही देने अदालत पहुंचे बांके बिहारी


कृष्णभक्तों में खासतौर पर बिहारीजी के भक्तों में एक कथा प्रचलित है। एक गरीब ब्राह्मण बांके बिहारी का भक्त था। एक बार उसने किसी महाजन से कुछ रुपये उधार लिए। हर महीने वह थोड़ा-थोड़ा करके कर्ज चुकाया। आखिरी किस्त के पहले महाजन ने उसे अदालती नोटिस भिजवा दिया कि उधार बकाया है और पूरी रकम व्याज सहित वापस करे।

ब्राह्मण परेशान हो गया। महाजन के पास जा कर उसने बहुत सफाई दी पर कोई असर नहीं हुआ। मामला कोर्ट में पहुंचा। कोर्ट में भी ब्राह्मण ने जज से वही बात कही, मैंने सारा पैसा चुका दिया है। जज ने पूछा, कोई गवाह है जिसके सामने तुम महाजन को पैसा देते थे। कुछ सोचकर उसने बिहारीजी मंदिर का पता बता दिया।

Saturday, May 9, 2015

भगवान की निष्काम भक्ति ही करनी चाहिये - Shre Radhe Radhe


निष्काम भक्ति..

एक भक्त था, वह रोज बिहारी जी के मंदिर जाता था। पर मंदिर में बिहारी जी की जगह उसे एक ज्योति दिखाई देती थी, मंदिर में बाकी के सभी भक्त कहते- वाह ! आज बिहारीजी का श्रंगार कितना अच्छा है,
बिहारी जी का मुकुट ऐसा, उनकी पोशाक ऐसी,, तो वह भक्त सोचता... बिहारी जी सबको दर्शन देते है, पर मुझे
क्यों केवल एक ज्योति दिखायी देती है । 


हर दिन ऐसा होता। एक दिन बिहारी जी से बोला ऐसी क्या बात है की आप सबको तो दर्शन देते है पर मुझे दिखायी नहीं देते । कल आपको मुझे दर्शन देना ही पड़ेगा. अगले दिन मंदिर गया फिर बिहारी जी उसे जोत के रूप में दिखे ।

Friday, May 8, 2015

shree Krishan - श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में



श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ सिंहासन पर विराजमान थे, निकट ही गरुड़ और
सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे। तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था।

बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि, "हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं ?"

द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है।
तभी गरुड़ ने कहा कि, "भगवान! क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है?
इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि, "भगवान! मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?"

भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को, 'अहंकार', हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।

ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि, "हे गरुड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।" गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।

इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि, "देवी! आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं" और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया। मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि, "तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो। और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।"

भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए।

गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर कहा कि, "हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।"

हनुमान ने विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, "आप चलिए, मैं आता हूं।" गरुड़ ने सोचा, "पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मैं भगवान के पास चलता हूं।" यह सोचकर गरुड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़े।

पर यह क्या, महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया।

तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि, "पवन पुत्र! तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?"

हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान ने कहा कि, "प्रभु! आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था, इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें।"

भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे। हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया, "हे प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।"

अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी। उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था। रानी सत्यभामा, सुदर्शन चक्र व गरुड़, तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था।

वे भगवान की लीला समझ रहे थे। तीनों की आंख से आंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए।
अद्भुत लीला है प्रभु की। अपने भक्तों के अंहकार को अपने भक्त द्वारा ही दूर किया।

- जय श्री राधे राधे !!

Thursday, May 7, 2015

ब्रजभूमि की परिक्रमा - Braj Bhoomi Ki Parikrama


ब्रजभूमि की परिक्रमा

यदि दुनियां के सबसे पवित्र और अलग हटकर दृश्य देखने हैं तो वह चाहत पूरी होगी यहां आस्था का मन लेकर, परिक्रमा करने से। उत्तर प्रदेश राज्य का यह हिस्सा राजस्थान प्रांत से भी सटा हुआ है। 84 कोस की परिक्रमा पैदल चलने वाले ही यहां के प्रत्येक स्थलों के दर्शन कर पाते हैं। इस परिक्रमा में सैकडों किमी की यात्रा आपको श्रद्घा भाव से करनी होती है जो मथुरा, बरसाना, छाता, कमई, गोवर्धन, कांमा, सहार, कोसी, वृंदावन, गोकुल समेत अलीगढ, डीग, फरीदाबाद, आगरा जिलों से घूमते हुए पूरी होती है। इतना ही नहीं इसके बाद यह भी स्थल आपके मन में दिव्यता प्रकट करेंगे…

1. मधुवन
2. तालवन
3. कुमुदवन
4. शांतनु कुण्ड
5. सतोहा
6. बहुलावन
7. राधा-कृष्ण कुण्ड
8. ततारपुर
9. काम्यक वन
10. संच्दर सरोवर
11. जतीपुरा
12. डीग का लक्ष्मण मंदिर
13. साक्षी गोपाल मंदिर
14. जल महल
15. कमोद वन
16. चरन पहाड़ी कुण्ड
17. काम्यवन
18. छत्रवन
19. नंदगांव
20. जावट
21. कोकिलावन
22.सहबाहु
23. शेरगढ
24. चीर घाट
25. नौहझील
26. श्री भद्रवन
27. भांडीरवन
28. बेलवन
29. राया वन
30. गोपाल कुण्ड
31. कबीर कुण्ड
32. भोयी कुण्ड
33. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर
34. दाऊजी
35. महावन
36. ब्रह्मांड घाट
37. चिंताहरण महादेव
38. मानसीगंगा
39. लोहवन
40. नरी-सेमरी

इस यात्रा मार्ग में कई और पौराणिक स्थलों के अलावा 12 वन, 24 उपवन, चार कुंज, चार निकुंज, चार वनखंडी, चार ओखर, चार पोखर, 365 कुण्ड, चार सरोवर, दस कूप, चार बावरी भी जो या दुनियां में कहीं और जगह नहीं हैँ, आपको मिलेंगे जी।

- - जय श्री राधे राधे !!

Friday, April 24, 2015

श्री कृष्ण का मुंडन संस्कार की लीला - Sri Krishna



उस समय व्रज के लोगों का मुख्य व्यवसाय (profession) गौ-चारण ही था इसलिए मुख्य व्यवसाय से सम्बंधित कुछ वर्जनाएं भी थी।  अब इसे वर्जनाएं कहें या सामाजिक नियम बालक का जब तक मुंडन नहीं हो जाता तब तक उसे जंगल में गाय चराने नहीं जाने दिया जाता था।

अब तो हम काफी आधुनिक (modern) हो गये हैं या यूं कह सकते हैं अपनी जड़ों से दूर हो गये हैं नहीं तो हमारे
यहाँ भी बालक को मुंडन के पहले ऐसी-वैसी जगह नहीं जाने दिया जाता था। 

खैर....बालक कृष्ण रोज़ अपने परिवार के व पडौस के सभी पुरुषों को, थोड़े बड़े लड़कों को गाय चराने जाते
देखते तो उनका भी मन करता पर मैया यशोदा उन्हें मना कर देती कि अभी तू छोटा है, थोड़ा बड़ा हो
जा फिर जाने दूँगी।

एक दिन बलराम जी को गाय चराने जाते देख कर लाला अड़ गये –"दाऊ जाते हैं तो मैं भी गाय चराने
जाऊंगा....ये क्या बात हुई....वो बड़े और मैं छोटा ?" मैया ने समझाया कि दाऊ का मुंडन हो चुका है
इसलिए वो जा सकते हैं, तुम्हारा मुंडन हो जायेगा तो तुम भी जा सकोगे।

लाला को चिंता हुई इतनी सुन्दर लटें रखे या गाय चराने जाएँ। बहुत सोच विचार के बाद उन्होंने सोचा
कि लटें तो फिर से उग जायेगी पर गाय चराने का इतना आनंद अब मुझसे दूर नही रहना चाहिए।
तुरंत नन्दबाबा से बोले –"कल ही मेरा मुंडन करा दो....मुझे गाय चराने जाना है।

नंदबाबा हँस के बोले –“ऐसे कैसे करा दें मुंडन....हमारे लाला के मुंडन में तो जोरदार आयोजन करेंगे."
लाला ने अधीरता से कहा –"जो करना है करो पर मुझे गाय चराने जाना है....आप जल्दी से जल्दी मेरा
मुंडन करवाओ। " 

मुंडन तो करवाना ही था अतः नंदबाबा ने गर्गाचार्य जी से लाला के मुंडन का मुहूर्त निकलवाया । निकट में अक्षय तृतीया का दिन शुभ था इसलिए उस दिन मुंडन का आयोजन तय हुआ। न्यौते बांटे गये कई तैयारियां की गयी। आखिर वो दिन आया. जोरदार आयोजन हुआ, मुंडन हुआ और मुंडन होते ही लाला मैया से बोले –"मैया मुझे कलेवा नाश्ता दो....मुझे गाय चराने जाना है । " मैया बोली –"इतने मेहमान आये हैं घर में तुम्हें देखने और तुम हो कि इतनी गर्मी में गाय चराने जाना है....थोड़े दिन रुको गर्मी कम पड़ जाए तो मैं तुम्हें
दाऊ के साथ भेज दूँगी । " 

लाला भी अड़ गये –"ऐसा थोड़े होता है....मैंने तो गाय चराने के लिए ही मुंडन कराया था....नहीं तो मैं
इतनी सुन्दर लटों को काटने देता क्या....मैं कुछ नहीं जानता....मैं तो आज और अभी ही जाऊंगा गाय
चराने । "   मैया ने नन्द बाबा को बुला कर कहा –"लाला मान नहीं रहा....थोड़ी दूर तक आप इसके साथ हो
आइये....इसका मन भी बहल जायेगा....क्योंकि इस गर्मी में मैं इसे दाऊ के साथ या अकेले तो भेजूंगी
नहीं । " 

नन्द बाबा सब को छोड़ कर निकले. लाला भी पूरी तैयारी के साथ छड़ी, बंसी, कलेवे की पोटली ले कर
निकले एक बछिया भी ले ली जिसे हुर्र....हुर्र कर चरा कर वो अपने मन में ही बहुत खुश हो रहे थे....कि आखिर
मैं बड़ा हो ही गया।  बचपन में सब बड़े होने के पीछे भागते हैं कि कब हम बड़े होगे....और आज हम बड़े सोचते हैं कि हम बच्चे ही रहते तो कितना अच्छा था।  

खैर....गर्मी भी वैशाख माह की थी और व्रज में तो वैसे भी गर्मी प्रचंड होती है। थोड़ी ही देर में बालक
श्री कृष्ण गर्मी से बेहाल हो गये पर अपनी जिद के आगे हार कैसे मानते....बाबा को कहते कैसे की थक
गया हूँ....अब घर ले चलो....सो चलते रहे....मैया होती तो खुद समझ के लाला को घर ले आती पर बाबा
थे....चलते रहे।  रास्ते में ललिता जी और कुछ अन्य सखियाँ मिली। देखते ही लाला की हालत समझ गयी. गर्मी से कृष्ण का मुख लाल हो गया था सिर पर बाल भी नही थे इसलिए लाला पसीना-पसीना हो गये थे।
उन्होंने नन्द बाबा से कहा कि आप इसे हमारे पास छोड़ जाओ. हम इसे कुछ देर बाद नंदालय पहुंचा देंगे।
नंदबाबा को रवाना कर वो लाला को निकट ही अपने कुंज में ले गयीं । 

उन्होंने बालक कृष्ण को कदम्ब की शीतल छांया में बिठाया और अपनी अन्य सखी को घर से चन्दन, खरबूजे के बीज, मिश्री का पका बूरा, इलायची, मिश्री आदि लाने को कहा । सभी सामग्री लाकर उन सखियों ने प्रेम भाव से कृष्ण के तन पर चन्दन की गोटियाँ लगाई और सिर पर चन्दन का लेप किया । कुछ सखियों ने पास में ही बूरे और खरबूजे के बीज के लड्डू बना दिए और इलायची को पीस कर मिश्री के रस में मिला कर शीतल शरबत तैयार कर दिया और बालक कृष्ण को प्रेमपूर्वक आरोगाया ।

साथ ही ललिता जी लाला को पंखा झलने लगी। यह सब अरोग कर लाला को नींद आने लगी तो ललिताजी ने उन्हें वहीँ सोने को कहा और स्वयं उन्हें पंखा झलती रही । कुछ देर आराम करने के बाद लाला उठे और ललिता जी उन्हें नंदालय छोड़ आयीं। आज भी अक्षय-तृतीया के दिन प्रभु को ललिता जी के भाव से बीज के लड्डू और इलायची का शीतल शर्बत आरोगाये जाते हैं व विशेष रूप से केशर मिश्रित चन्दन जिसमें मलयगिरी पर्वत का चन्दन भी मिश्रित होता है की गोटियाँ लगायी जाती हैं । लाला ने गर्मी में गाय चराने का विचार त्याग
दिया था। औपचारिक रूप से श्री कृष्ण ने गौ-चारण उसी वर्ष गोपाष्टमी (दीपावली के बाद वाली अष्टमी) के दिन से प्रारंभ किया और इसी दिन से उन्हें गोपाल कहा जाता है।

वर्ष में एक ये ही दिन ऐसा होता है जब बीज के लड्डू अकेले श्रीजी को आरोगाये जाते हैं अन्यथा अन्य
दिनों में बीज के लड्डू के साथ चिरोंजी के लड्डू भी आरोगाये जाते हैं

- जय श्री राधे राधे !!

Friday, April 10, 2015

भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिये


भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन क्यों नहीं करने चाहिये 


कहते है भगवान श्रीकृष्ण की पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए, दरअसल पीठ के दर्शन न करने के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण के अवतार की एक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असुर कालयवन भी भगवान से युद्ध करने आ पहुंचा. कालयवन श्रीकृष्ण के सामने पहुंचकर ललकारने लगा.

तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले. इस तरह रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा. जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा. इस तरह भगवान रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्मों के पुण्य बहुत अधिक थे और कृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते जब कि पुण्य का बल शेष रहता है.

जिस तरह शिशुपाल की गालिया भी भगवान तब तक सुनते रहे जब तक उसके पुण्य शेष थे.गालियाँ पूरी होते ही जैसे ही उसके पुण्य क्षीण हुए भगवान ने चक्र से उसकी गर्दन को काट दी.


इसी तरह कालयवन कृष्णा की पीठ देखते हुए भागने लगा और इसी तरह उसका अधर्म बढऩे लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है और उसके दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है.

"धर्म: स्तनोंsधर्मपथोsस्य पृष्ठम् " श्रीमद्भागवत में द्वितीय स्कंध के, द्वितीय अध्याय के श्लोक ३२ में शुकदेव जी राजा परीक्षित को भगवान के विराट स्वरूप का वर्णन करते हुए कह रहे है- कि धर्म भगवान का स्तन और अधर्म पीठ है.

जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया कृष्ण एक गुफा में चले गए. जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था. मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को निंद से जगाएगा और राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा. कालयवन ने मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठा दिया और राजा की नजर पढ़ते ही राक्षस वहीं भस्म हो गया.

अत: भगवान श्री हरि की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे हमारे पुण्य कर्म का प्रभाव कम होता है और अधर्म बढ़ता है. कृष्णजी के हमेशा ही मुख की ओर से ही दर्शन करें. यदि भूलवश उनकी पीठ के दर्शन हो जाते हैं और भगवान से क्षमा याचना करनी चाहिए.

- जय श्री राधे राधे !!

Tuesday, April 7, 2015

राधा नाम की महिमा - Radhe Naam Ki Mahima

एक व्यक्ति था, एक बार एक संत उसके नगर में आये ! वह उनके दर्शन करने गया और संत से बोला - स्वामी जी ! मेरा एक बेटा है, वो न तो भगवान को मानता है, न ही पूजा-पाठ करता है, जब उससे कहो तो कहता है मै किसी संत को नहीं मानता, अब आप ही उसे समझाइये,स्वामी जी ने कहा - ठीक है, मैं तुम्हारे घर आऊँगा.




एक दिन वे उसके घर गए और उसके बेटे से बोले -बेटा एक बार कहो : राधा, बेटा बोला : मै क्यों कहूँ,स्वामीजी ने बहुत बार कहा, अंत में वह बोला मै ‘राधा’ क्यों कहूँ ! स्वामी जी ने कहा - जब तुम मर जाओ तो मरने पर यमराज से पूँछना कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है, इतना कहकर वे चले गए ! एक दिन वह मर गया : यमराज के पास पहुँच गया, तब उसने पूँछा - आप मुझे बताये कि एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है?

यमराज ने कहा - मुझे नहीं पता कि क्या महिमा है, शायद इन्द्र को पता होगा, चलो उससे पूछते है ! जब उसने देखा की यमराज तो कुछ ढीले पड़ रहे है, तो बोला- मै ऐसे नहीं जाऊँगा, पालकी मँगाओ, तुरंत पालकी आ गयी, उसने कहार से बोला - आप हटो, यमराज जी आप इसकी जगह लग जाओ ! यमराज लग गए, इंद्र के पास गए !

इंद्र ने पूछा – ये कोई खास है क्या? यमराज जी ने कहा-ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा नाम लेने की क्या महिमा है - पूँछ रहा है ! आप बताइये,

इंद्र ने कहा - महिमा तो बहुत है, पर क्या है - ये नहीं पता, ये तो ब्रह्मा जी ही बता सकते है !

व्यक्ति बोला - तुमभी पालकी में लग जाओ, अब उसकी पालकी में एक ओर यमराज दूसरी ओर इंद्र लग गए और ब्रह्मा जी के पास पहुँचे !

ब्रह्मा जी ने कहा- ये कोई महान व्यक्ति लगता है, जिसे ये पालकी में लेकर आ रहे है ! ब्रह्मा जी ने पूँछा : ये कौन है? तो यमराज जी ने कहा - ये पृथ्वी से आया है और एक बार 'राधा' नाम लेने की क्या महिमा है - पूँछ रहा है ! आप को तो पता ही होगा !

ब्रह्मा जी ने कहा –महिमा तो अनंत है, पर ठीक- ठीक तो मुझे भी नहीं पता, शंकरजी ही बता सकते है ! व्यक्ति ने कहा - तीसरी जगह पालकी में आप लग जाइये, ब्रह्मा जी भी लग गए ! पालकी लेकर शंकरजी के पास गए ! शंकरजी ने कहा ये कोई खास लगता है, जिसकी पालकी को यमराज, इंद्र, ब्रह्मा जी, लेकर आ रहे है, पूँछा तो ब्रह्मा जी ने कहा: ये पृथ्वी से आया है और एक बार राधा-नाम लेने की महिमा पूँछ रहा है ! हमें तो पता नहीं, आप को तो जरुर पता होगा, आप तो समाधी में सदा उनका ही ध्यान करते है

शंकर जी ने कहा - हाँ, पर ठीक प्रकार से तो मुझे भी नहीं पता, विष्णु जी ही बता सकते है ! व्यक्ति ने कहा – आप भी चौथी जगह लग जाइये, अब शंकर जी भी पालकी में लग गए !

अब चारो विष्णुजी के पास गए और पूँछा कि एक बार 'राधा-नाम' लेने की क्या महिमा है -

भगवान ने कहा : राधा नाम की यही महिमा है कि इसकी पालकी, आप जैसे देव उठा रहे है, ये अब मेरी गोद में बैठने का अधिकारी हो गए है !



“ जय जय श्री राधे ”


परम प्रिय श्री राधा-नाम की महिमा का स्वयं श्री कृष्ण ने इस प्रकार गान किया है -
"जिस समय मैं किसी के मुख से ’रा’अक्षर सुन लेता हूँ,उसी समय उसे अपना उत्तम भक्ति-प्रेम प्रदानकर देता हूँ और ’धा’ शब्द का उच्चारण करने पर तो मैं प्रियतमा श्री राधा का नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे-पीछे चल देता हूँ !""
ब्रज के रसिक संतश्री किशोरी अली जीने इस भाव को प्रकट किया है :-

" आधौ नाम तारि है 
राधा 'र' के कहत रोग सब मिटि हैं, 'ध ' के कहत मिटै सब बाधा
राधा राधा नाम की महिमा, 
गावत वेद पुराण अगाधा अलि किशोरी रटौ निरंतर, 
वेगहि लग जाय भाव समाधा "

Sunday, April 5, 2015

कब कृपा करोगे सांवरिया कब कृपा करोगे बनवारी


वन वन ढूंढ रही थी तुमको बन के जोगन प्रेम दीवानी 

यही सोच के मिलेंगे हम तुम बन जाएगी प्रेम कहानी

है कोई जो मिलन करा दे मेरा प्रियतम मुझे मिला दे  

बिन सोचे बिन कारन ही मैं निकल पड़ी घर छोड़

सायद इस अबला पे तरस खा जाएंगे मन मोहन  

क्यों नहीं अपनाते मुझको अपना दरस दिखाते मुझको

माना की पापिन बहुत बड़ी हु पर तुम भी दयालु कम तो नहीं

मो पे कृपा करो गिरधारी मो पे कृपा करो गिरधारी

कब कृपा करोगे सांवरिया कब कृपा करोगे बनवारी

Kanha - कान्हा तुम्हें पाकर



ए "कान्हा" सुन रहे हो ना अधूरापन खत्म हो जाता है, "कान्हा" तुम्हें पाकर... 

दिल का हर "तार" गुनगुनाता है,  "कान्हा" तुम्हें पाकर... "गम" जाने किधर जाता है, "कान्हा" तुम्हे पाकर...

सब "सिकवे" दूर हो जाते हैं, "कान्हा" तुम्हें पाकर...

जानता हूँ चंद पलों की ज़िन्दगी है मेरी "अफ़सोस" नहीं रहता बाकी, "कान्हा" तुम्हे पाकर...

"राह" तकती हैं, ये लम्बी पगडंडीयां "थक" कर भी चैन पाती हैं, "कान्हा" तुम्हें पाकर...

तमाम "मायुशियाँ" छुप जाती हैं जिंदा "लाश" मानो उठ जाती है,  "कान्हा" तुम्हें पाकर...

"तनहा" मरना सब भूल जाती हूँ "कान्हा" तुम्हारा स्पर्श पाकर... "कान्हा" तुम्हें पाकर...



में तो तेरा पागल प्रेम दीवाना प्रेम करो कृष्णा।।

Tuesday, March 24, 2015

मुझे चाहो उस पागल की तरह




हमारे बाद नहीं आयेगा तुम्हें चाहत का ऐसा मज़ा "कन्हैया"…..

तुम लोगों से कहते फिरोगे मुझे चाहो उस पागल की तरह……..



जय श्री राधे राधे !!

श्री कृष्ण और एक अंग्रेज भगत कि सुन्दर कहानी

रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे कृष्ण प्रेरणा से ब्रज में आकर बस गये …
उनका कन्हैया से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे……
एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया पर्दा हटाकर देखा 
तो हलवे में छोटी छोटी उँगलियों के निशान थे ……

जिसे देख कर 'निक्सन' की आखों से अश्रु धारा बहने लगी …
क्यूँ कि इससे पहले भी वे कई बार भोग लगा चुके थे पर पहलेकभी ऐसा नहीं हुआ था |
और एक दिन तो ऐसी घटना घटी कि सर्दियों का समय था, निक्सन जी कुटिया के बाहर सोते थे |
ठाकुर जी को अंदर सुलाकर विधिवत रजाई ओढाकर फिर खुद लेटते थे |

एक दिन निक्सन सो रहे थे……
मध्यरात्रि को अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें आवाज दी हो... दादा ! ओ दादा !
उन्होंने उठकर देखा जब कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे हो
सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया.... दादा ! ओ दादा !
उन्होंने अंदर जाकर देखा तो पता चला की वे ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाना भूल गये थे |

वे ठाकुर जी के पास जाकर बैठ गये और बड़े प्यार से बोले...''आपको भी सर्दी लगती है क्या...?''
निक्सन का इतना कहना था कि ठाकुर जी के श्री विग्रह से आसुओं की अद्भुत धारा बह चली...
ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सनजी भी फूट फूट कर रोने लगे.....

उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी |  हे ठाकुर जी ! हम इस लायक तो नहीं कि ऐसे भाव के साथ आपके लिए रो सकें.....पर फिर भी इतनी प्रार्थना करते हैं कि....

''हमारे अंतिम समय में हमे दर्शन भले ही न देना पर…… अंतिम समय तक ऐसा भाव जरूर दे देना जिससे आपके लिए तडपना और व्याकुल होना ही हमारी मृत्यु का कारण बने....''.

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय

जय जय श्री राधे राधे

Sunday, March 22, 2015

किसकी मोहब्बत ज्यादा है तुम्हारी या मेरी




भक्त ने भगवान कृष्ण से पूछा हे कृष्ण  

" किसकी मोहब्बत ज्यादा है, तुम्हारी,  या मेरी " 



भगवान कृष्ण ने मुस्कुरा के बोले कि -.


 " जा के समंदर के किनारे तुम अपने हाथों में पानी 

उठा लेना, 

जितना तुम उठा लो वो तुम्हारी चाहत ओर 

जो उठा न सको वो हमारी चाहत."


जय श्री राधे राधे !!


हक़ीक़त में भी बढ़ाया करो कान्हा नजदीकी हमसे !!
ख़्वाबों की मुलाक़ातों से तसल्ली नहीं होती !!

Thursday, March 19, 2015

केवल श्री कृष्ण के लिये धडकता है



ना रईस हूँ , ना अमीर हूँ ...

न मैं बादशाह हूँ ना वजीर हूँ ....

तेरा इश्क है मेरी सल्तनत ,  

मैं उसी सल्तनत का फ़क़ीर हूँ .......


खूबसूरत है वो लब ........ जिन पर ,

केवल श्री कृष्ण नाम ......की चर्चा है !!

खूबसूरत है ............ वो दिल जो ,  

केवल श्री कृष्ण के लिये धडकता है !!

खूबसूरत है वो जज़बात जो , 

श्री कृष्ण संग की भावनाओं को समझ जाए !!

खूबसूरत है.....वो एहसास जिस में , 

श्री कृष्ण प्रेम ......की मिठास हो जाए !!

खूबसूरत हैं ....... वो बाते जिनमे , 

श्री कृष्ण ......... की बाते शमिल हो !!

खूबसूरत है.......वो आँखे जिनमें , 

श्री कृष्ण के ..... दर्शन की प्यास है !!

खूबसूरत है .... वो हाथ जो  

श्री कृष्ण की सेवा में लगे रहते है !!

खूबसूरत है........... वो सोच जिसमें ,

केवल श्री कृष्ण की ही सोच हो !!

खूबसूरत हैं .......... वो पैर जो ,  

दिन रात केवल प्यारे श्री कृष्ण की तरफ बढ़ते है !!

खूबसूरत हैं ...... वो आसूँ , 

जो केवल प्यारे श्री कृष्ण के लिये बहते है !!

ख़ूबसूरत हैं..........वो कान , 

जो कृष्ण नाम के गुणगान सुनते हैं !!

ख़ूबसूरत हैं..........वो शीश , 

जो कृष्ण चरणों में नमन के लिये झुकते हैं !!

 जय श्री राधे राधे !!

Wednesday, March 18, 2015

कभी प्रीत लगाई नहीं वो प्रीत निभाना क्या जाने






जो प्रेम गली में आया ही नहीं कृष्णा प्रीतम का ठिकाना क्या जाने 

जिसने कभी प्रीत लगाई नहीं वो प्रीत निभाना क्या जाने 

जो वेद पढ़े और भेद करे मन में नहीं निर्मलता आई 

वह चाहे कितना ज्ञान कहे भगवान को पाना क्या जाने 


जय श्री राधे राधे !!


पुण्य कोटी जन्मों का उदित हो जाता हैं,  वृंदावन धाम में जो एक बार आ जाता हैं।
कामना न रहती किसी और बात की उसको, स्वर्ग पूर विमान यूँ कह कर फिराता हैं।
"ऐ हो देवदूतो !! क्यों विमान हो लाए यहाँ, अरे! वृंदावन छोड के बैकुंठ कौन जाता हैं।

Tuesday, March 17, 2015

हे कान्हा kanha





मैं दुनियाँ से यह नही कहता की मेरी परेशानी कितनी बड़ी है 

बल्कि परेशानी से कहता हु की मेरी डोर सांवरे से जुडी है 



......... हे कान्हा ..........


मेरे दिल के कोने कोने में कान्हा तेरा घर बन जाये 



ऐसा वरदान दो कान्हा मेरी में तुझे पुकारु और



तू सामने मेरे आ जाये नादान हूँ मै कान्हा 



मुझसे भूल कोई ना हो जाये  


मेरा दामन थाम के कान्हा तू सत की राह दिखाए 


मन में है विश्वास ये कान्हा कभी टूटने ना पाये 



मेरे दिल के कोने कोने में तेरा घर बन जाये



तुम्हारे चरणों का दास  



जय श्री राधे 


Monday, March 16, 2015

भगवान को खिचड़ी का भोग क्यू लगता है



कर्माबाई भगवान को बालभाव से भजती थीं. ठाकुरजी से पुत्र की तरह बातें करती. एक दिन बिहारीजी को अपने हाथ से कुछ बनाकर खिलाना चाहा.  गोपाल बोले- जो भी बना है वही खिला दो. खिचड़ी बनी थी. ठाकुरजी ने चाव से खाया. कर्माबाई पंखा झलने लगीं कि कहीं गोपाल के मुंह न जल जाएं.

भगवान ने कहा-मेरे लिए खिचड़ी पकाया करो. रोज सुबह उठतीं पहले खिचड़ी बनातीं. बिहारीजी आते खिचड़ी खाकर जाते. एकबार एक साधु कर्माबाईजी के घर आया.  उसने सुबह-सुबह खिचड़ी बनाते देखा तो कहा-नहा धोकर भगवान के लिए प्रसाद बनाओ.

कर्माबाई बोलीं-क्यां करूं,गोपाल सुबह-सुबह भूखे आ जाते हैं.  उसने चेताया भगवान को अशुद्ध मत करो.  स्नान के बाद रसोई साफ करो फिर भोग बनाओ.

सुबह भगवान आए और खिचड़ी मांगा. वह बोलीं-स्नान कर रही हूँ, रुको! थोड़ी देर बाद भगवान ने फिर आवाज लगाई.  वह बोलीं- सफाई कर रही हूं.  भगवान ने सोचा आज माँ को क्या हो गया.

भगवान ने झटपट खिचड़ी खायी, पर खिचड़ी में भाव का स्वाद नहीं आया. जल्दी में बिना पानी पिए ही भागे, संत को देखा तो समझ गए.

मंदिर के पुजारी ने पट खोले तो देखा भगवान के मुख से खिचड़ी लगी है. प्रभु! खिचड़ी आप के मुख में कैसे लगी.

भगवान ने कहा-आप उस संत को समझाओ, मेरी माँ को कैसी पट्टी पढाई. पुजारी ने संत से सारी बात कही. वह कर्माबाई से बोला- ये नियम संतो के लिए हैं. आप जैसे चाहो बनाओ.

एकदिन कर्माबाईजी के भी प्राण छूटे. उस दिन भगवान बहुत रोए. पुजारी ने भगवान को रोता देख कारण पूछा. वह बोले - आज माँ इस लोक से विदा हो गई. अब मुझे कौन खिचड़ी खिलाएगा.

पुजारी ने कहा- प्रभु माता की कमी महसूस न होने दी जाएगी. आज से सबसे पहले रोज खिचड़ी का भोग लगेगा

इस तरह आज भी जगन्नाथ भगवान को खिचड़ी का भोग लगता है.

जय श्री राधे राधे !!

Friday, March 13, 2015

राधा रानी की अष्ट सखियो के बारे मे जानते है

1. ललिता सखी - ये सखी सबसे चतुर और पिय सखी है। राधा रानी को तरह-तरह के खेल खिलाती है। कभी-कभी नौका-विहार, वन-विहार कराती है। ये सखी ठाकुर जी को हर समय बीडा(पान) देती रहती है। ये ऊँचे गाव मे रहती है। इनकी उम 14 साल 8 महीने 27 दिन है।




2. विशाखा सखी - ये गौरांगी रंग की है। ठाकुर जी को सुदंर-सुदंर चुटकुले सुनाकर हँसाती है। ये सखी सुगन्धित दव्यो से बने चन्दन का लेप करती है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 15 दिन है।

3.चम्पकलता सखी - ये सखी ठाकुर जी को अत्यन्त पेम करती है। ये करहला गाव मे रहती है।इनका अंग वण पुष्प-छटा की तरह है।ये ठाकुर जी की रसोई सेवा करती है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 13 दिन है।

4. चिता सखी - ये सखी राधा रानी की अति मन भावँती सखी है। ये बरसाने मे चिकसौली गाव मे रहती है। जब ठाकुर जी 4 बजे सोकर उठते है तब यह सखी फल, शबत, मेवा लेकर खड़ी रहती है। इनकी उम 14 साल 7 महीने 14 दिन है।

5. तुगंविधा सखी - ये सखी चदंन की लकड़ी के साथ कपूर हो ऐसे महकती है।ये युगलवर के दरबार मे नृत्य ,गायन करती है।ये वीणा बजाने मे चतुर है

ये गौरा माँ पार्वती का अवतार है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 22 दिन है।

6. इन्दुलेखा सखी - ये सखी अत्यन्त सुझबुझ वाली है। ये सुनहरा गाव मे रहती है।ये किसी कि भी हस्तरेखा को देखकर बता सकती है कि उसका क्या भविष्य है। ये पेम कहानियाँ सुनाती है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 10 दिन है।

7. रगंदेवी सखी - ये बड़ी कोमल व सुदंर है। ये राधा रानी के नैनो मे काजल लगाती है और शिंगार करती है।इनकी उम 14 साल 2 महीने 4 दिन की है।

8.सुदेवी सखी - ये सबसे छोटी सखी है। बड़ी चतुर और पिय सखी है। ये सुनहरा गाव मे रहती है। ये ठाकुर जी को पानी पिलाने की सेवा करती है।इनकी उम 14 साल 2 महीने 4 दिन की है।


जय श्री राधे राधे !!

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