रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे कृष्ण प्रेरणा से ब्रज में आकर बस गये …
उनका कन्हैया से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे……
एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया पर्दा हटाकर देखा
तो हलवे में छोटी छोटी उँगलियों के निशान थे ……
जिसे देख कर 'निक्सन' की आखों से अश्रु धारा बहने लगी …
क्यूँ कि इससे पहले भी वे कई बार भोग लगा चुके थे पर पहलेकभी ऐसा नहीं हुआ था |
और एक दिन तो ऐसी घटना घटी कि सर्दियों का समय था, निक्सन जी कुटिया के बाहर सोते थे |
ठाकुर जी को अंदर सुलाकर विधिवत रजाई ओढाकर फिर खुद लेटते थे |
एक दिन निक्सन सो रहे थे……
मध्यरात्रि को अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें आवाज दी हो... दादा ! ओ दादा !
उन्होंने उठकर देखा जब कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे हो
सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया.... दादा ! ओ दादा !
सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया.... दादा ! ओ दादा !
उन्होंने अंदर जाकर देखा तो पता चला की वे ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाना भूल गये थे |
वे ठाकुर जी के पास जाकर बैठ गये और बड़े प्यार से बोले...''आपको भी सर्दी लगती है क्या...?''
निक्सन का इतना कहना था कि ठाकुर जी के श्री विग्रह से आसुओं की अद्भुत धारा बह चली...
ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सनजी भी फूट फूट कर रोने लगे.....
उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी | हे ठाकुर जी ! हम इस लायक तो नहीं कि ऐसे भाव के साथ आपके लिए रो सकें.....पर फिर भी इतनी प्रार्थना करते हैं कि....
''हमारे अंतिम समय में हमे दर्शन भले ही न देना पर…… अंतिम समय तक ऐसा भाव जरूर दे देना जिससे आपके लिए तडपना और व्याकुल होना ही हमारी मृत्यु का कारण बने....''.
बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय
जय जय श्री राधे राधे